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नाटक-एकाँकी >> रंग अरंग

रंग अरंग

हृषीकेश सुलभ

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8611
आईएसबीएन :9788126722112

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"रंगमंच की विविधवर्णी छवियों और शताब्दियों पुरानी परम्पराओं का समकालीन रंगविमर्श।"

अरंग में भारतीय रंगमंच की विविधवर्णी छवियाँ अंकित हैं। इन छवियों को सहेजते हुए रंग-चिंतक हृषीकेश खुलभ अपने समय के सरोकारों के साथ शताब्दियों पुरानी रंगपरम्परा के गह्वरों में उतरते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार की रंग-अवधारणाओं से टकराते हैं और अपने समय का रंगविमर्श रचते हैं। रंग अरंग के आलेखों में एक ओर संस्कृत रंगमंच के बाद भाषा नाटकों के उदयकाल के लक्षणग्रंथ वर्णरत्नाकर और धूर्त्तसमागम, पारिजातहरण और गोरक्षविजय जैसे नाटकों का गहन विश्लेषण है, तो दूसरी ओर प्रोबीर गुहा, अरविन्द गौड़ और सुबोध पटनायक जैसे रंगकर्मियों के माध्यम से आज के रंगकर्म की संघर्षशील धारा की विवेचनात्मक पड़ताल है। इनमें आज़ादी के समय अपने नाटकों से गाँवों में अलख जगानेवाले विस्मृत रखूल मियाँ के स्मरण के साथ-साथ्य हबीब तनवीर, श्यामानन्द जालान, विजय तेंडुलकर, नेमिचन्द्र जैन, जगदीश चन्द्र माथुर, देवेन्द्र राज अंकुर आदि की रचनात्मकता से गुज़रने का विनम्र प्रयास है,…और हैं सत्ता और सत्ता के पहरुओं से संस्कृति की टकराहट की ध्वनियाँ। प्रस्तुतियों में नवाचार के बहाने नाटक की समग्र प्रभावान्विति और रंगप्रविधियों के विश्लेषण से रंगआस्वादन के लिए राहों की खोज रंग अरंग के आलेखों की विशिष्टता है।

हषीकेश सुलभ उन विरल लोगों में हैं जो साहित्य और रंगमंच के साथ-साथ कला की विविध सरणियों में अपनी आवाजाही के लिए जाने जाते हैं। रंग अरंग उनकी इसी आवाजाही का साक्ष्य है। ये कथाकार, नाटककार और रंग-चिंतक तो हैं ही, रंगमंच, संगीत, नृत्य, फिल्म और चित्रकला के रसिक भी हैं। उनकी रसिकला रसज्ञता से परे जाकर रंगमंच और अन्‍य कलाओं की दीप्ति से हमारा साक्षात्कार करवाती है । रंग अरंग में रंगमंच के अलावा और भी बहुत कुछ समाहित है।

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